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गीत

चलो हम सूरज उगायें

आचार्य संजीव 'सलिल'


सघन तम से क्यों डरें हम?
भीत होकर क्यों मरें हम?
मरुस्थल भी जी उठेंगे-
हरीतिमा मिल हम उगायें...

विमल जल की सुनें कल-कल।
भुला दें स्वार्थों की किल-किल।
सत्य-शिव-सुन्दर रचें हम-
सभी सब के काम आयें...

लाये क्या?, ले जायेंगे क्या?,
किसी के मन भाएंगे क्या?
सोच यह जीवन जियें हम।
हाथ-हाथों से मिलाएं...

आत्म में विश्वातं देखें।
हर जगह परमात्म लेखें।
छिपा है कंकर में शंकर।
देख हम मस्तक नवायें...

तिमिर में दीपक बनेंगे।
शून्य में भी सुर सुनेंगे।
नाद अनहद गूंजता जो
सुन 'सलिल' सबको सुनायें...

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Comments

  1. संजीव जी बहुत खूब सुंदर लिखा है

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आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर

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