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ग़ज़ल ( दर्द)

मिलना था इत्तेफाक बिचरना नसीब था
वो इंतना दूर हो गया जितना करीब था।
बस्ती के सारे लोग आतिश परस्त थे
घर जल रहा था मेरा समंदर करीब था।
दफना दिया मुझे चांदी के कब्र में
जिस लड़की से प्यार करता था वो लड़की गरीब थी।
मरयम कहा तलाश करू तेरे खून को
जो हाल कर गया मेरा वो बहुत खुश नसीब था।
मिलना था इत्तेफाक बिचादना नसीब था
वो इतना दूर गया जितना करीब था।

Comments

  1. आपकी दोनों ग़ज़ल पसंद आई
    बहुत खूब लिखा है !

    ReplyDelete

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आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर

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