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एहे मेरे मन क्यों तू अकेला सा है ..........

संजय .....लिखा और पढ़ना सब नही जानते
जो दिल की बात को समझे वही लिख सकता है ....
मेरा ये लिखा उन सबको समर्पित है जो ..हताशा में है
चाहे वो मै...ही ख़ुद क्यों ना हू ................................
..................................................................................
एहे मेरे मन तू
मुझे ये बता
क्यों तू अकेला सा है ..
क्यों तेरा ये चेहरा ..
बुझा सा है
जीवन के पथ पर तू
क्यों यु पड़ा अकेला सा है ..
अपने राही को ले
थाम उसका हाथ ..
मुश्किलों का कर सामना ..
तू चंदन सामान बन ..
दे अपनी खुशबु सब को
पर चिता की लकडी ..मत बन
बन कर खुशबु ..छा जा
हर जीवन को महका जा ..
अपना हर्ष मुखित
चेहरा लिए .......
ले दुनिया को जीत तू ...
निर्भयता से कर सामना ...
हर मुश्किल का तू ..
अपनी आप बीती को छोड़ .
वर्तमान मे जीना सीख ..
अपनी स्मृतिय्यो..को.
रख साथ मे
धर्य रख ....
उठ चल आगे बढ..
उस चींटी के समान तू ....
जो ना कभी डरी किसी से
जिस के आगे हाथी ने भी मानी हार है ...
एहे मेरे मन तू
मुझे ये बता
क्यों तू अकेला सा है ...................
...(कृति...अनु......)

Comments

  1. अनुराधा जी बहुत ही खूबसूरत नज्म
    मजा आ गया !

    ReplyDelete
  2. अनुराधा जी सच अच्छा लिखा है
    आपका मेल मिला आपने रुला दिया !
    ऐसा ही लिखा है आपने

    ReplyDelete

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आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर

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ग़ज़ल

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