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चुनावी दौर...........



चुनावी दौर
लो जी ,फिर आया मौसम ,
चुनाव का
फिर से मुद्दों कि मुहीम छिडी...
फिर से शुरू हुई वोटो को मांगने की..भीख
हर प्रत्त्याशी ने अपने पत्ते है खोले
फिर से झूठे वादों का दौर आया ...
कही तो बटे नोट ...
तो कही हुआ गाली गलौच ..
का माहौल ..
फिर भी हर पॉँच साल बाद आये
ये चुनावी माहौल ......
जो उठा कांग्रेस का पंजा ..
तो डर के भागा हाथी....बहिन मायावती का
उडी नींद सभी की जो
जगी लालटेन लालू की ...इन सभी की बीच
खिला जो फूल कमल का ......
ऐसा की जो आज तक कभी ना मुरझाया ...
भले .....
ही पार्टी का हर कार्यकर्ता ..
आपस मे लड़ भीडे ....पर
हम नहीं सुधरेगे ...इसे पे है सब अडिग...
लो जी ,फिर आया मौसम ,
चुनाव का .............
.(.....कृति...अनु....)

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आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर

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हाथी धूल क्यो उडाती है?

केहि कारण पान फुलात नही॥? केहि कारण पीपल डोलत पाती॥? केहि कारण गुलर गुप्त फूले ॥? केहि कारण धूल उडावत हाथी॥? मुनि श्राप से पान फुलात नही॥ मुनि वास से पीपल डोलत पाती॥ धन लोभ से गुलर गुप्त फूले ॥ हरी के पग को है ढुधत हाथी..

ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा