गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा
kya baat kah di aapne chand shabdon mein hi.
ReplyDeleteab aur kya kahun,kuch bacha hi nahi.
chand shabd aur puri duniya sametdi aapne
ReplyDeleteसार्थक लेखन
ReplyDeleteबधाई हो!!
आस्था जी बहुत की खूब!
ReplyDeleteअच्छी नज्म !
मैं हूँ , मजबूर , बेहतर है , मुझे मजबूर रहने दो ,
ReplyDeleteये दिन नाज़ुक बहुत हैं मुझको तुमसे दूर रहने दो .
जो तुमको , चाहता हूँ , तो बताना क्या जरूरी है ,
दिखावे के हैं ' ये दस्तूर ' , ' ये दस्तूर ' रहने दो .