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मै क्या हू .....?


मै क्या हू .....?
मै क्या सोचती हू ?
मै क्या चाहती हू ?
खुद नहीं जानती ........
क्या पाना ,क्या खोना
मेरे लिए सब एक सा है ..
क्यूकि इस दिल से उम्मीद ....
शब्द ही मिट चुका है|
कभी सोचू.........ऐसा करू ,
कभी सोचू ...मै वैसा करू
ऐसे और वैसे के चक्रव्हिहू में ,
कभी कुछ नहीं किया |
कभी सोचू अपने लिए
थोडा सा तो जी लू
फिर सोचा .....वो क्या कहेगा
ये क्या कहेगा . ..सब क्या कहेगे
इसी सोच में , अपने लिए जीना ही छोड़ दिया |
कभी देश की हालत पे गंभीर हो लेती हू ,
पर दूसरे ही पल ...सब लोगो संग हस देती हू
ये सोच की ...सिर्फ मेरे सोचने भर से क्या होगा ,
मै क्या बोलू और क्या ना बोलू ..
कभी सोचा ही नहीं .....
मै क्या हू .....?
(....कृति....अनु ...)

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आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर

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ग़ज़ल

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