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ग़ज़ल

आँखों में बस गई तेरी तस्वीर क्या करें
लेकिन जुदा है हमारी तकदीर क्या करें
बेहतर येही है आप हमें भूल जाईये
उलटी है अपने ख्वाब की ताबीर क्या करें
कागज़ कलम है हाथ में लिखना है हाले दिल
बैठे हुए है सोच में तहरीर क्या क्या करें
है यार हमको वादा मुलाकात का मगर
हालत की पों में जंजीर क्या करें
किस्मत से तू हमारी बहुत दूर हो गया
दिल से लगा के अब तेरी तस्वीर क्या करें
कहते है जिसे हौसला वो अप्प में नही
हातो में दे के आपके शमशीर क्या करें
आँखों में एक हुजूम है ख्वाबों का ए अलीम
मिलती नही उन्हें ताबीर क्या करें।

Comments

  1. बहुत बढ़िया .........दोस्त गजब लिखा है

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आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर

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ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा