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ग़ज़ल

नक्श जो दिल पे है वो उनसे मिटाया न गया
हाले दिल हम से मगर उनको सुनाया न गया।
दोष परचार के हम मुल्क ऐडम को निकले
बोझ बरसों के गुनाहों का उठाया न गया
भूल मजनू को पनाह देने की बस कर बैठे
हम से शीशे के मकानों को बचाया न गया
सहर अंगेजी सूरत का असर तो देखो
दीद में बाद निगाहों को हटाया न गया
हम सुनते ही रहे उनका फ़साना शब् भर
हाले दिल अपना मगर उनको सुनाया न गया
नाज़ की उनके बदन की हो बया कैसे आलीम
भीगी पलकों का ही बोझ उनसे उठाया न गया

Comments

  1. बहुत ही बेहतरीन गजल बार बार बधाई भाई

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आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर

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ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा