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suicide

शब्दों का झुंड
बढ़ता चला जा रहा
आत्महत्या करने
दुःख था
..की क्यूं बदल जाते है अर्थ
शब्दों के प्रयोग करने बाले के अनुसार ,
परिस्थितियों,
विचारधाराओं और
मान्यताओं के अनुरूप भी,
शब्द क्यों खो देते है
अपना अर्थ और अस्तित्व भी कभी कभी.
कोई क्यूँ नही लिखता
शब्दों को उनके वास्तविक रूप में
उनकी अपनी प्रकिर्ति
और पविर्ति के अनुरूप.
हम करते है इनका दुरूपयोग
अपनी भड़ास और दुर्भावना
प्रदर्शित करने के लिए साहित्य में
द्वि अर्थिभाव से.

www. pathiik.blogspot.com

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आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर

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ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा