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outoum

पतझड
क्यों न आया तू
मेरे जीवन में भी
गिर जाते पात मेरे भी
पुराने सूखे और कुछ नए.
निकलती कोंपले,
नई पत्तियां और शाखाएं भी ।
जीवन चला जा रहा है
लगातार निरंतर एक सा
क्या नही चाहिए
परिवर्तन
पतझड़ और झंझावात
वृक्षों की तरह
हमारे जीवन में भी
प्रस्तुतकर्ता sameervatsa
@in.com

Comments

  1. समीर जी बहुत अच्छी रचना !!

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  2. खूबसूरत नज्म,बड़ी अच्छी तरह से सजाया है !

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आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर

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ग़ज़ल

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