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माँ का मंथन .....


एक माँ कि पीडा ...जो ना तो अपने बच्चो से कुछ कहे
सकती है ......और ना ही अपने बडो को ....
बड़े जो सब कुछ जानते हुए भी कुछ समझना नहीं चाहते,
और .......बच्चे कुछ समझते नहीं है ......बस...ये ही सब
कहने कि चेष्टा..कि है मैंने ..........
.................................................................................
दिल में उठे तूफान को ,कैसे मै शांत करू ....
वजूद पे उठे प्रश्नों का
कैसे मै समाधान करू ......
ये तो हर रात का किस्सा है ,
हर बात में मेरा भी हिस्सा है ,
हर रात कि मौत के बाद ....सुबह के जीने में मेरा भी हिस्सा है ,
फिर भी जीने से कोसो दूर हू मै..
दर्द और तकलीफ लिए चलती चली ....
नयी और पुराणी पीढी ,के विचारो का
कैसे...मै .. मेल करू.....
दो भिन्न धारायो का,
कैसे मै मिलन करवाऊ ,
इन रिश्तो कि भीड़ में ......
दो किनारों के बीच
देखो.......मै सेतु बनी ........
आदान प्रदान ..की प्रक्रिया मे..
फिर एक माँ समंदर बनी ....
दिल मै दफ़न किये हर बात ...
देखो मै जीती चली .........
क्या कहू और किस से कहू ...
कि मै ..चिलचिलाती धूप में भी ........
सिर्फ एक बूंद पसीने .............को भी तरसी .. .......
हर पल ये ही सोचती चली ......कि .....
दिल में उठे तूफान को ,कैसे मै शांत करू ................
(....कृति...अनु....)

Comments

  1. बहुत अच्छी रचना !!
    इसी तरह जारी रखें !!

    ReplyDelete
  2. दिल मे उतरने वाली कविता है आपकी !!
    बहुत अच्छी रचना!!
    बहुत बढ़िया!!

    ReplyDelete

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आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर

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ग़ज़ल

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