गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा
बेहद अच्छा कदम है संतोष जैन स्टील जी आप मूर्ती चोरी को रोकने के जो कदम उठा रहे है !!
ReplyDeleteबहुत अच्छा प्रयाश!
अच्छा प्रयास संतोष जी बहुत खूब!!!
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