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सच्ची धार्मिकता क्या है ?

नंगे घूमना मेरा व्यक्तिगत अधिकार हो सकता है पर यदि इससे समाज में अन्य लोगों को हानि हो रही हो तो उनकी खातिर मुझे अपने इस अधिकार को अपने बैडरूम तक सीमित कर लेना चाहिये - यही मेरा धर्म है।  यह ठीक उसी प्रकार से है कि फुल वॉल्यूम पर गाना सुनना मेरा मूलभूत अधिकार होगा पर अगर मेरे पड़ोस में बच्चे बोर्ड की परीक्षाओं में व्यस्त हैं तो मुझे अपने इस अधिकार में कटौती करनी होगी।  तभी मैं अच्छे पड़ोसी का धर्म निभा पाऊंगा ।  यदि हम धर्म - अधर्म की, कर्तव्य - अकर्तव्य की विश्व की इस प्राचीनतम परिभाषा को समझ लें, हृदयंगम कर लें तो हम पुनः एक बार सही मार्ग पर चल निकलेंगे। पर समस्या ये है कि हमारे पाठ्यक्रम में यह शिक्षा कहीं है ही नहीं ।  और तो क्या कहें, धर्म का पाठ पढ़ाने को अपनी जीविका बनाने वाले पंडितों, पुरोहितों, कथा-वाचकों, शिक्षा-शास्त्रियों को भी यह जानकारी देने की आवश्यकता है, ऐसा मेरा अनुभव है।

 

Sushant K. Singhal

Blog : www.sushantsinghal.blogspot.com

email : info@sushantsinghal.com

              singhal.sushant@gmail.com

 

Comments

  1. अच्छी अभिव्यक्ति...बहुत सुंदर तरीके से प्रस्तुत किया बहुत खूब !!!

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आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर

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ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा