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हर ओर सृजन

आए प्रेममास के पुलकित दिन
ऋतुराज की तरुनाई कहू इसे
या कहूं वसंत का यौवन
आए प्रेममास के पुलकित दिन

हर गुलशन गुलजार हुआ
हर भवरे को मिला निमंत्रण
आए प्रेममास के पुलकित दिन
इसकी सुबह, इसकी शामें, इसकी रातें
क्षण-क्षण मादक हर पल चंचल
आए प्रेममास के पुलकित दिन

विषबेल बन गई अमर बेल
बंजर में गुंजन करें फूल
आए प्रेममास के पुलकित दिन

चौखट-चौखट चंदा चमके
आँगन-आँगन बेला महके
बगिया में खिले गुलाबों पर
जूही रीझे चंपा अकुले
आए प्रेममास के पुलकित दिन

इठलाती नदिया भी रुक-रुक
सागर से हँसी ठिठोल करे
आए प्रेममास के पुलकित दिन

गुमसुम बच्चे भी करें शोर
जीवन की कैसी नई भोर
आए प्रेममास के पुलकित दिन

धरणी पर उतरे कामदेव
रमणी के दिल में उथल-पुथल
आए प्रेममास के पुलकित दिन

कैसी टूटन कैसी सिहरन
हर ओर सृजन हर ओर सृजन
आए प्रेममास के पुलकित दिन

दीक्षांत तिवारी
हिंदुस्तान, आगरा
मीठीमिर्ची.ब्लागस्पाट.कॉम

Comments

  1. ज्ञानेंद्र जी मैंने आपकी यह रचना भड़ास पर पडी थी शायद !!
    तो मैं आपसे वही कहना छह रहा था की आपकी यह रचना मैं अपनी पत्रिका मे छापना चाहता हूँ जिसे मे मदर डे पर प्रकाशित कर रहा हूँ आपकी आज्ञा हो तो!!
    आप मुझे संपर्क कर सकते है !!
    फ़ोन-09907048438

    ReplyDelete
  2. ज्ञानेंद्र जी मैं आपकी रचना सड़क की बात कर रहा हूँ!!

    ReplyDelete
  3. अच्छी रचना के लिए बधाई !

    ReplyDelete

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आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर

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केहि कारण पान फुलात नही॥? केहि कारण पीपल डोलत पाती॥? केहि कारण गुलर गुप्त फूले ॥? केहि कारण धूल उडावत हाथी॥? मुनि श्राप से पान फुलात नही॥ मुनि वास से पीपल डोलत पाती॥ धन लोभ से गुलर गुप्त फूले ॥ हरी के पग को है ढुधत हाथी..

ग़ज़ल

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