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मैं संग हूँ तो मुझे ठोकर लगाओ


मैं संग हूँ तो मुझे ठोकर लगाओ
इसी बहाने ही सही जरा छू के जाओ ....

जो भी हूँ तुम्हारे सामने ही हूँ मैं
हो इरादा गर तो मुझको भी आजमाओ ....

क्यूँ कहते हो के कुछ सूझता नहीं
आईने से जमी हुई ये गर्द तो हटाओ ....

फिर बिछुड़ के हम मिले या ना मिले
एक बार यूँ ही गले से तो लगाओ ....

"राज" दिल का दर्द आंसुओ में न निकले
हर घडी बस मुस्कराओ और मुस्कराओ

आगे पढ़ें के आगे यहाँ

Comments

  1. वहा क्या बात है दोस्त दिल को छु जाती है आपकी कविता बहुत बढ़िया

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  2. बहुत बढ़िया है!

    ---

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  3. कल्पना जी, कविता तो वाकई अच्छी बहुत है, दिल को छू सी गई........... कभी वक़्त मिले तो मेरी कवितायेँ पड़ने ज़रूर आईयेगा zindagikiaarzoo.blogspot.com पर ....

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  4. कल्पना जी, कविता तो वाकई अच्छी बहुत है, दिल को छू सी गई........... कभी वक़्त मिले तो मेरी कवितायेँ पड़ने ज़रूर आईयेगा zindagikiaarzoo.blogspot.com पर ....

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  5. अच्छा लिखा है आपने बहुत खूब

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आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर

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