Skip to main content

खो देना चहती हूँ तुम्हें.. Feel the words (Poem by Chhiyaishi )

सही है कि तुम चले गये, दूर अब मुझसे हो गये
इतने वक़्त से भी कहाँ करीब थे, पर अब फाँसले सदा के लिए हो गये
बात करने का तुमसे मन नहीं, कोई जवाब तुम्हारे खयाल का देना नहीं
ना तुमसे कोई रिश्ता, ना अब कोई और चाह रही
काश की तुम बीते दिनों से भी मिट जाओ, तुम्हारी यादें इस कोहरे में कहीं गुम जायें
काश कि तुम्हारा नाम मुझे फिर याद न आये, ये याद रहे कि तुम मेरे कोई नहीं
जो हो तुम मेरे कोई नहीं तो फिर भी क्यूं याद करती हूँ ये कह कर कि तुम मेरे 'कोई नही'
चले जाओ तुम मेरे शब्दों से, ख्यालों से, इस वक्ये के बाद तो तुम जा चुके हो मेरे सपनों से भी
नाम लेते ही साँसों में अब भी हलचल सी क्यूँ होती है
क्यूँ किसी बात की आशा अब भी रहती है
हाथों से तुम्हें छिटकना चाहती हूँ फिर भी एहसास छूटता क्यूँ नहीं
चलते हुये गिरती हूँ तो आज भी क्यूँ तुम्हारा हाथ बढा देना याद आता है
ये दिन - यह वाक्या बीता है तो फिर इसी तरह ज़िन्दगी आगे भी बढ जायेगी
तुम्हारा तो पता नहीं, मुझे 'बूढे हो जाने पर ये-वो होगा' - वाली बातें याद आयेगीं
चाहती हूँ इस सबके बाद भी तुमसे कभी मुलाकात ना हो
सामना करने की हिम्मत जो खो बैठी हूँ
सूरत-सीरत, अन्दाज़ और तलफ्फुज़् सब बदल गये हैं
बहुत डर लगता है अपने इस बद्ले हुए रूप से
काफी चीज़े छोड आयीं हूँ पीछे
वो तभी के लिये सही थी
अब तो उन्हें साथ लिये ज़िन्दगी जीना भी कठिन है
खुश रहो तुम सदा, बहुत बडे बनो
ज़िन्दगी का हर मकाम तुम्हें हासिल हो, ये तमन्ना है मेरी
बस तुमसे सामना ना हो फिर कभी, ये ख्वाहिश बाकी रहेगी

Comments

  1. बहुत सुंदर रचना है !!
    काफी प्रभावित किया है,आप इसी तरह लिखते रहिये!!

    ReplyDelete

Post a Comment

आपका बहुत - बहुत शुक्रिया जो आप यहाँ आए और अपनी राय दी,हम आपसे आशा करते है की आप आगे भी अपनी राय से हमे अवगत कराते रहेंगे!!
--- संजय सेन सागर

Popular posts from this blog

हाथी धूल क्यो उडाती है?

केहि कारण पान फुलात नही॥? केहि कारण पीपल डोलत पाती॥? केहि कारण गुलर गुप्त फूले ॥? केहि कारण धूल उडावत हाथी॥? मुनि श्राप से पान फुलात नही॥ मुनि वास से पीपल डोलत पाती॥ धन लोभ से गुलर गुप्त फूले ॥ हरी के पग को है ढुधत हाथी..

ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा