गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा
बहुत ही खूबसूरत रचना है प्रीती जी की !!
ReplyDeleteप्रीती जी आपकी यह रचना मुझे इतनी अच्छी लगी की मैंने यहाँ प्रकासित कर दी!!
सच जितनी खूबसूरती के साथ प्रीति जी ने इन रचनाओ को सजाया है उतनी ही
ReplyDeleteसटीकता और सुलभता से लिखा है !!
प्रीति जी आज तक मैंने ऐसी रचना नहीं पढ़ी !!!
अगर मे ये कहूं की हिन्दुस्तान का दर्द ब्लॉग पर ये सबसे सुंदर रचना है तो कुछ गलत न होगा!!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया प्रीति जी
काफी प्रभाबित किया आपकी रचनाओं ने !
बहुत सुंदर रचना है !!
ReplyDeleteकाफी प्रभावित किया है,आप इसी तरह लिखते रहिये!!