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अत्याचारी ने आज पुनः ललकारा


अत्याचारी ने आज पुनः ललकारा
अन्यायी का चलता है दमन दुधारा
आँखों के आगे सत्य मिटा जाता है,
भारत माँ का शीश कटा जाता है;
क्या पुनः देश टुकडो में बात जायेगा?
क्या सबका शोणित पानी बन जायेगा?





कब तक दानव की माया चलने देंगे?
कब तक भस्मासुर को हम छलने देंगे?
कब तक जम्मू को जलने देंगे?
आखिर कब तक जुल्मो मदिरा ढलने देंगे?
चुप-चाप सहेंगे कब तक लाठी गोली॥
कब तक खेलेंगे दुश्मन खून से होली??

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ग़ज़ल

गज़ब का हुस्नो शबाब देखा ज़मीन पर माहताब देखा खिजां रसीदा चमन में अक्सर खिला-खिला सा गुलाब देखा किसी के रुख पर परीशान गेसू किसी के रुख पर नकाब देखा वो आए मिलने यकीन कर लूँ की मेरी आँखों ने खवाब देखा न देखू रोजे हिसाब या रब ज़मीन पर जितना अजाब देखा मिलेगा इन्साफ कैसे " अलीम" सदकतों पर नकाब देखा